वांछित मन्त्र चुनें

उदी॑रतां सू॒नृता॒ उत्पुर॑न्धी॒रुद॒ग्नय॑: शुशुचा॒नासो॑ अस्थुः। स्पा॒र्हा वसू॑नि॒ तम॒साप॑गूळ्हा॒विष्कृ॑ण्वन्त्यु॒षसो॑ विभा॒तीः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud īratāṁ sūnṛtā ut puraṁdhīr ud agnayaḥ śuśucānāso asthuḥ | spārhā vasūni tamasāpagūḻhāviṣ kṛṇvanty uṣaso vibhātīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत्। ई॒र॒ता॒म्। सू॒नृताः॑। उत्। पुर॑म्ऽधीः। उत्। अ॒ग्नयः॑। शु॒शु॒चा॒नासः॑। अ॒स्थुः॒। स्पा॒र्हा। वसू॑नि। तम॑सा। अप॑ऽगूळ्हा। आ॒विः। कृ॒ण्व॒न्ति॒। उ॒षसः॑। वि॒ऽभा॒तीः ॥ १.१२३.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:123» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:5» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सत्पुरुषो ! (सूनृताः) सत्यभाषणादि क्रियावान् होते हुए तुम लोग जैसे (पुरन्धीः) शरीर के आश्रित क्रिया को धारण करती और (शुशुचानासः) निरन्तर पवित्र करानेवाले (अग्नयः) अग्नियों के समान चमकती-दमकती हुई स्त्री लोग (उदीरताम्) उत्तमता में प्रेरणा देवें वा (स्पार्हा) चाहने योग्य (वसूनि) धन आदि पदार्थों को (उदस्थुः) उन्नति से प्राप्त हों वा जैसे (उषसः) प्रभातसमय (तमसा) अन्धकार में (अपगूढा) ढँपे हुए पदार्थों और (बिभातीः) अच्छे प्रकाशों को (उदाविष्कृण्वन्ति) ऊपर से प्रकट करते हैं, वैसे होओ ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जब स्त्रीजन प्रभातसमय की वेलाओं के समान वर्त्तमान अविद्या, मैलापन आदि दोषों को निराले = दूर कर विद्या और पाकपन आदि गुणों को प्रकाश कर ऐश्वर्य्य की उन्नति करती हैं, तब वे निरन्तर सुखयुक्त होती हैं ॥ ६ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे सत्पुरुषा सूनृताः सन्तो यूयं यथा पुरन्धीश्शुशुचानासोऽग्नय इव स्त्रिय उदीरताम् स्पार्हा वसूनि उदस्थुः। यथोषसस्तमसापगूढा द्रव्याणि विभातीश्चोदाविष्कृण्वन्ति तथा भवत ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत्) उत्कृष्टतया (ईरताम्) प्रेरयन्तु (सूनृताः) सत्यभाषणादिक्रियाः (उत्) (पुरन्धीः) याः पुरं श्रितां दधाति ताः (उत्) (अग्नयः) पावका इव (शुशुचानासः) भृशं पवित्रकारकाः (अस्थुः) तिष्ठन्तु (स्पार्हा) स्पृहणीयानि (वसूनि) (तमसा) अन्धकारेण (अपगूढा) आच्छादितानि (आविः) प्राकट्ये (कृण्वन्ति) कुर्वन्ति (उषसः) प्रभाता (विभातीः) विशिष्टप्रकाशान् ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदा स्त्रिय उषर्वद्वर्त्तमाना अविद्यामलिनतादि निष्कृत्य विद्यापवित्रतादि संप्रकाश्यैश्वर्यमुन्नयन्ति तदा ताः सततं सुखिन्यो भवन्ति ॥ ६ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा स्त्रिया उषेप्रमाणे अविद्या, मलिनता, निष्क्रियता इत्यादी दोष दूर करून विद्या, पवित्रता इत्यादी गुण प्रकट करतात तेव्हा त्या सदैव सुखी होतात. ॥ ६ ॥